बहुत कुछ घुट रहा है अंतस में पिछले दो दिनों से -
सदियों से रिसी है
अंतस में ये पीड़
स्त्री संपत्ति
पुरूष पति
हारा जुए में
हरा सभा में चीर
कभी अग्निपरीक्षा
कभी वनवास
कभी कर दिया सती
कभी घोटी भ्रूण में साँस
क्यों स्वीकारा
संपत्ति, जिन्स होना
उपभोग तो वांछित था
कह दे
लानत है
इस घृणित सोच पर
इनकार है
मुझे संपत्ति होना
तलाश अपना आसमां
खोज अपना अस्तित्व
अब पद्मिनी नहीं
लक्ष्मी बनना होगा
जौहर में स्वदाह नहीं
खड्ग ले जीना होगा
-शील