वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Thursday, 20 December 2012

इनकार है


बहुत कुछ घुट रहा है अंतस में पिछले दो दिनों से -


सदियों से रिसी है
अंतस में ये पीड़
स्‍त्री संपत्ति
पुरूष पति
हारा जुए में
हरा सभा में चीर
कभी अग्निपरीक्षा
कभी वनवास
कभी कर दिया सती
कभी घोटी भ्रूण में साँस


क्यों स्वीकारा
संपत्‍ति, जिन्स होना
उपभोग तो वांछित था
कह दे
लानत है
इस घृणित सोच पर
इनकार है
मुझे संपत्‍ति होना


तलाश अपना आसमां
खोज अपना अस्तित्‍व
अब पद्‍मिनी नहीं
लक्ष्मी बनना होगा
जौहर में स्वदाह नहीं
खड्‍ग ले जीना होगा

-
शील

5 comments:

  1. सशक्त रचना सुशीला दी.....
    नमन..

    अनु

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  2. बहुत बढ़िया और शानदार कविता । धन्यवाद

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  3. बेहतरीन,सशक्त अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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  4. आपका यह इनकार वाजिब भी है.... नारी कि शक्ति का परिचय देती सषक्त रचना!

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