तुम आए
मरू में तपती रेत पर
बारिश बनकर
जी उठी हूँ
सौंधी-सौंधी
महक मन भर।
तुम्हारे प्रेम की फुहार में
भीग गया है मेरा तन-मन
लहराता आंचल
दौड़ रहा है मुझमें
तुम्हारा प्रेम परिमल !
बीज दिए हैं तुमने
कितने ही सपने, आशाएँ
कामनाएँ जग उठी हैं
खुली आँखों में !
हो गई हूँ एक नदी
तुम्हारे प्रेम में तरंगित
तुम्हारे ही आवेग में
उन्मादिनी-सी बह रही हूँ -
समा जाना चाहती हूँ
जिसकी अतल गहराइयों में मौन,
खुद को खोकर
चाहती हूँ होना एकाकार
और अभिन्नक तुम्हारे
प्रेम में सरसिज !
देखो ! चाँद भी मुस्कुरा रहा है
सोलह कलाओं को समेटे साथ
हमारे प्रेम का साक्षी
मानो दे रहा है सौगात
बरसा कर शुभ्र चाँदनी !
- शील
चित्र : साभार गूगल
बहुत खूबशूरत अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleterecent post : तड़प,,,
बहुत ही सुन्दर वर्णन..सुखद अहसास लिए बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
बेहतरीन कविता |
ReplyDeleteवाह....बहुत खूबशूरत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
प्रेम की नाज़ुक सी अभिव्यक्ति है ये रचना ... लाजवाब ...
ReplyDeleteप्रेम पगी सुंदर रचना
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