वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday, 2 December 2012

तुम आए



तुम आए 
मरू में तपती रेत पर
बारिश बनकर
जी उठी हूँ
सौंधी-सौंधी
महक मन भर।

तुम्हारे प्रेम की फुहार में
भीग गया है मेरा तन-मन 
लहराता आंचल 
दौड़ रहा है मुझमें
तुम्हारा प्रेम परिमल !

बीज दिए हैं तुमने
कितने ही सपने, आशाएँ
कामनाएँ जग उठी हैं 
खुली आँखों में !
हो गई हूँ एक नदी
तुम्हारे प्रेम में तरंगित
तुम्हारे ही आवेग में 
उन्मादिनी-सी बह रही हूँ - 
समा जाना चाहती हूँ
जिसकी अतल गहराइयों में मौन, 
खुद को खोकर
चाहती हूँ होना एकाकार 
और अभिन्नक तुम्हारे
प्रेम में सरसिज !

देखो ! चाँद भी मुस्कुरा रहा है
सोलह कलाओं को समेटे साथ
हमारे प्रेम का साक्षी
मानो दे रहा है सौगात
बरसा कर शुभ्र चाँदनी !

- शील

चित्र : साभार गूगल

6 comments:

  1. बहुत खूबशूरत अभिव्यक्ति,,,,

    recent post : तड़प,,,

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  2. बहुत ही सुन्दर वर्णन..सुखद अहसास लिए बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

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  3. वाह....बहुत खूबशूरत सुंदर प्रस्तुति

    recent post: बात न करो,

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  4. प्रेम की नाज़ुक सी अभिव्यक्ति है ये रचना ... लाजवाब ...

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