हर लमहा काबिज वो खयालों पर
अब भाए न कुछ, क्या होली क्या ईद !
अंधेरों से निकल रोशनी में आ जाओ
तकते राह उजाले, क्या होली क्या ईद !
आज भी दिल है उसकी मुहब्बत का मुरीद
सनम की बेवफ़ाई; क्या होली क्या ईद !
हम उसे चाहें हमारी नादानियाँ हैं
वो देखें न मुड़ के, क्या होली क्या ईद !
जला दिलेनादां बहुत इश्क हुआ धुँआ-धुँआ
लगाए हैं राख दिल से, क्या होली क्या ईद !
-सुशीला श्योराण
चित्र : साभार गूगल