वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
Showing posts with label जब माँ थी. Show all posts
Showing posts with label जब माँ थी. Show all posts

Sunday, 16 June 2013

जब माँ थी; मालिक थे पिता

  • मेरी कलम से पिता जी के लिए - Happy Father's Day पापा !
    जिस पदचाप से
    चौकन्नी हो जाती हवेली
    जिस रौबीली आवाज़ से
    सहम जातीं भीतें
    दुबक जाते बच्चे
    पसर जाती खामोशी
    समय के कुएँ में
    पैठता गया रौब
    अब प्रतिध्वनि पर
    नहीं ठहरता कुछ
    चलता रहता है यंत्रवत
    दैनिक कार्यकलाप।

  • ~~~~~~~~~~~~~~~~~

    जब माँ थी
    मालिक थे पिता
    घर-बार-संसार
    चलता मर्ज़ी से
    माँ के जाते ही
    मुँद गए किवाड़
    अनाथ हुआ घर
    आधे-अधूरे
    हो गए पिता।
    -शील