वीथी
वीथी
हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Sunday, 14 April 2013
प्रेम
प्रेम
अनजानी राहों से
दरिया, पर्वतों को लांघ
चला ही आया
तुम्हारा प्रेम।
चुपके-से अँधेरे को चीर
नींद से कर वफ़ा के वादे
आ बैठा सिरहाने
सहलाता रहा केश
चूम ही लिया
मुँदी पलकों को
बिखरी अलकों में
उलझ गए तुम्हारे नैना।
होठों की जुंबिश
बुलाती रही तुम्हें
और तुम
निहारते ही रहे
मेरे चेहरे के दर्पण में
अपनी ही छवि !
- शील
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