वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Saturday, 8 June 2013

जेठ निष्ठुर - हाइकु

८ मई २०१३

१.
सूर्य प्रचंड
दग्ध अग्नि का कुंड
तपे भूखंड।

२.
जेठ निष्‍ठुर
उठते बवंडर
जलूँ, न जल।

३.
तड़की धरा
सूर्य-प्रकोप देख
किसान डरा।

४.
लू  तेरे बाण
नित हरते प्राण
मेघा ही त्राण।

५.
वीरान रास्ते
साँस रोके खड़े हैं
दरख़्त सारे।

६.
नीर-तलैया
ढूँढ रहे हैं प्राणी
पेड़ की छैंया।

७.
मेघा न आए
सूखे कुँए, बावड़ी
रवि तपाए।

८.
घर के छज्जे
जल का पात्र देख
पंछी हरखे।

९.
कारी बदरी
उमड़-घुमड़ आ
बाट गहरी।

१०.
चली पुरवा
लाई है संदेसवा
पी बिदेसवा।

- सुशीला श्योराण
 ‘शील’