आज विधाता से एक सवाल पूछने का बड़ा मन कर रहा है -
हे सृजनहार
पूछती हूँ
आज एक सवाल
क्यों लिख दी तूने
जन्म के साथ
मेरी हार ?
सौंदर्य के नाम पर
अता की दुर्बलता
सौंदर्य का पुजारी
कैसी बर्बरता !
इंसां के नाम पर
बनाए दरिंदे
पुरूष बधिक
हम परिंदे
नोचे-खसोटें
तन, रूह भी लूटें
आ देख
कैसे, कितना हम टूटे !
(लिखी जा रही कविता से...)
-शील