वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 22 September 2012

तुम हो !



तुम हो !
______

तुम नहीं हो
जानता है दिल
मानता नहीं
क्योंकि
तुम्हारा प्रेम
आज भी सींचता है
मन की प्यास को
जब भी अकेली होती हूँफट पड़ता है यादों का बादलडूबने लगती हूँ मैं
नीचे और नीचेयकायक तुम
आ बैठते हो पास
थाम लेते हो 
मज़बूत बाँहों सेदीप्‍त हो उठता है
तुम्हारा चेहरा
प्रेम की लौ से
मेरी प्रीत
उस लौ में जलकर
हो जाती है फ़ीनिक्स !

कौन कहता है
दुनिया से जाने वाले
नहीं लौटते
ज़रूर लौटते हैं
ज़िस्मों के पार
गर रिश्‍ते रूहानी हों
रूहानी हो पीर !
-
सुशीला

चित्र : साभार गूगल

11 comments:

  1. ज़रूर लौटते हैं
    ज़िस्मों के पार
    गर रिश्‍ते रूहानी हों
    रूहानी हो पीर

    गहन और बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ...!!

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  2. बहुत बढ़िया रूपक उठाया है इस कविता में रूहानी प्रेम में तो ईश्वर भी बहुरिया बन जाता है .बढ़िया रचना भाव विरेचक .

    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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  3. सुनहरी खूबसूरत मिथकीय पक्षी उकाब सा ,खूबसूरत परों वाला जो न सिर्फ ५००-१००० साल जीता है घोंसला बनाता है और उसी में जीवन भुगताने के बाद भस्म हो जाता है आग लगाकर .उसी भस्म से फिर पैदा हो जातें हैं उस के अंडे .

    फिनीक्स अमरीका के अरिजोना राज्य की राजधानी है आबादी के हिसाब से अमरीका का छटा बड़ा नगर है दसवां मेट्रोपोलिस.
    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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  4. भाव विरेचक बेहतरीन रचना है आपकी ,बधाई .सुनहरी खूबसूरत मिथकीय पक्षी उकाब सा ,खूबसूरत परों वाला जो न सिर्फ ५००-१००० साल जीता है घोंसला बनाता है और उसी में जीवन भुगताने के बाद भस्म हो जाता है आग लगाकर .उसी भस्म से फिर पैदा हो जातें हैं उस के अंडे .

    फिनीक्स अमरीका के अरिजोना राज्य की राजधानी है आबादी के हिसाब से अमरीका का छटा बड़ा नगर है दसवां मेट्रोपोलिस.
    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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    1. बहुत ख़ूबसूरत सृजन, बधाई.

      कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.

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  5. तुम्हारा चेहरा
    प्रेम की लौ से
    दीप्‍त हो जाता है
    मेरी प्रीत
    उस लौ में जलकर
    हो जाती है फ़ीनिक्स

    रचना आपकी पीर लिए है ,फीनिक्स दक्षिणी अर्द्ध गोल का एक तारामंडल (कोंस्तिलेशन)भी है .अमर प्रेम उसी तारमंडल के एक सितारा बन जाता है .जब जी चाहे देख लो .शीशा -ए -दिल में बसी तस्वीरे यार ,जज ज़रा गर्दन झुकाई ,देख ली .


    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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  6. ज़रूर लौटते हैं
    ज़िस्मों के पार
    गर रिश्‍ते रूहानी हों
    रूहानी हो पीर ...sahi bat...

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  7. कौन कहता है
    दुनिया से जाने वाले
    नहीं लौटते
    ज़रूर लौटते हैं
    ज़िस्मों के पार
    गर रिश्‍ते रूहानी हों
    रूहानी हो पीर !

    सुंदर सृजन, भावपूर्ण लेखन.
    बधाई सुशीला जी.

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  8. कौन कहता है
    दुनिया से जाने वाले
    नहीं लौटते
    ज़रूर लौटते हैं
    ज़िस्मों के पार
    गर रिश्‍ते रूहानी हों
    रूहानी हो पीर !...sach hai

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  9. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति .....

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  10. बहुत सुन्दर ....
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...
    :-)

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