वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Wednesday 31 August 2011

ईदगाह



ईद पर बरबस, आज याद आ गई "ईदगाह"
हामिद और उसकी दादी की; अनूठी गाथा 

अपनी बूढ़ी दादी की वो आँखों का तारा था
बहुत सलोना, बड़ा ही प्यारा औ न्यारा था 

बूढ़ी दादी जतन से चूल्हे पे बनाती रोटियाँ 
बिना चिमटे वो अक्सर जलाती उंगलियाँ 

ईद का त्यौहार आया, घर-घर खुशियाँ लाया 
तोहफ़ों की सौगात लिए मीठी सेवइयां लाया 

बच्चे उत्साह से डोलते, गली-गली चहकते थे 
नए कपड़े, मेला, ईदी उनके चेहरे दमकते थे

तीन पैसे की दौलत लिए, हामिद चला मेले में 
झूमता, नाचता-गाता; शामिल लोगों के रेले में

मेले की चकाचौंध भैया,खूब हामिद को ललचाने लगी
झूले, खिलौने, मिठाई से जा उसकी नज़र टकराने लगी 

चरखी आई किलके बच्चे! हाथी-घोड़ों पर झूल रहे  
वह दूर खड़ा; ख़याल और हीउसके मन में तैर रहे 

सिपाही, भिश्ती, वकील; सब उसको खींच रहे 
तीन पैसे मगर, मजबूती से मुट्ठी में भींच रहे 

सोहन हलवा, गुलाबजामुन और रेवड़ियाँ
हामिद को लुभाएँ, खट्टी-मीठी गोलियाँ

पर अपना संयम, हामिद हर्गिज नहीं गँवाता है
मिठाइयों के नुकसान, मन ही मन दोहराता है 

लोहे की दूकान ,चिमटे पे निगाह उसकी ठहर गई 
जली उंगलियाँ दादी की, ज़हन में उसके तैर गई

पाँच पैसे का चिमटा, जेब में उसकी कुल पैसे तीन 
थी ग़ुरबत बहुत मगर, कभी ना माना खुद को दीन

भारी दिल, भारी क़दमों से; हामिद आगे बढ़ लिया
बोहनी का समय,सौदा तीन पैसे में तय कर लिया

कंधे पर चिमटे को उसने रखा बड़े ही नाज़ से
ज्यों सिपाही की बंदूक हो चला बड़ी ही शान से


नासमझी का उसकी;किया दोस्तों ने खूब उपहास
हामिद भी चतुर बड़ा था,किया उनसे खूब परिहास 


मिट्टी के खिलौने, टूट-फूट मिट्टी में ही मिल जाते 
मेरा चिमटा रुस्तमे-हिंद ! इसकी शान कहाँ पाते 


घर लौटते ही दादी ने, उसे गोद में खींच लिया 
देख हाथ में चिमटा! अपने सिर को पीट लिया

लौटा मेले से भूखा-प्यासा, तू कैसा अहमक है 
चिमटा लाकर क्यों दादी को देता तोहमत है ?


सहमा-सा हामिद बोला-तू अपना हाथ जलाती थी 
बूढ़ा मन हुआ गदगद, अश्रु-धार ना रोके रूकती थी

बूढ़ी अमीना हाथ उठा, दुआएँ देती जाती थी
अपने नन्हे हामिद की, बलाएँ लेती जाती थी |






3 comments:

  1. प्रेमचंद जी की "ईदगाह" का पद्यात्मक स्वरूप अच्छा लगा.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  2. आपकी रचना पढ़ कर दिल भीग गया. ऐसा सृजन हृदय में मानवता भर देता है. बहुत सुंदर.

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  3. आपने प्रेमचंद जी की पूरी कहानी को बहुत मुख्तसर अल्फ़ाज़ में याद दिला दिया है।
    शुक्रिया !

    हमारा एक लेख आप भी देख लीजिए।

    http://vedquran.blogspot.com/2010/09/mandir-masjid-anwer-jamal.html

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