वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 26 May 2012

मैं, उम्मीदें


मैं
चंदन हूँ
आग हूँ 
सबने समझा राख
अंगार हूँ
बर्फ़-सी शीतलता
लावे-सी दहक हूँ
फूल पर शबनम
एक महक हूँ 
सबने समझा पीर
मैं शमशीर हूँ  !



उम्मीदें


ये तन्हाइयाँ
परेशानियाँ
दुश्‍वारियाँ
क्यूँ है गमनशीं
ए हमनशीं
क्या रूका है यहाँ
जो ये रूकेंगी
हो जाएँगी रूखसत
ज़रा पलकें उठा के देख
मेरी आँखों में तुम्हें
उम्मीदें दिखेंगी....
..
 

-सुशीला शिवराण

चित्र : साभार गूगल

14 comments:

  1. दोनों रचनाएँ हृदयस्पर्शी हैं

    ReplyDelete
  2. उम्दा रचनाएँ हैं जो दिल को छू लेती हैं.

    ReplyDelete
  3. सुशीला जी आप की दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी हैं......सस्नेह..

    ReplyDelete
  4. आपकी दोनों ही रचनाओं ने दिल को छुआ,बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर सुशीला जी....

    मनभावन रचनाएँ....

    अनु

    ReplyDelete
  6. उम्दा रचनाएँ , सुशीला जी!

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति सुशीला जी!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  9. सुंदर...सुशीला जी, उम्मीदों की झालर सजाए रखना, परेशानियाँ रुखसती की हमनशीं बनेँगीं...

    ReplyDelete
  10. sundar rachnayen. gaagar mein sagar

    ReplyDelete
  11. भावनाओ की बेहतरीन अभिव्यक्ति....
    बेहतरीन रचना...

    ReplyDelete
  12. दोनों रचनाएँ अति उत्तम, भावप्रण, शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  13. सच है सभी परेशानियां एक दिन चली जाती हैं ... उम्मीद की किरण हमेशा रहनी चाहिए ... यही जीवन है ..
    दोनों रचनाये बहुत ही अच्छी हैं ...

    ReplyDelete
  14. उम्मीद ही तो वह ताक़त है ...जो बड़े से बड़े तूफ़ान का हौसला भी पस्त कर देती है ....सुन्दर !

    ReplyDelete