वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday 26 August 2012

स्‍त्री पुरुष का व्याकरण




स्‍त्री पुरुष का व्याकरण

तुम शेष थे
विशेष हो गए
'
मैं ' और 'तुम 'थे जुदा
कब 'हम 'के श्‍लेष ' हो गए

[
श्‍लेष का अर्थ है चिपकना। जब एक ही शब्द से अनेक अर्थ चिपके हुए हों या निकलते हों, तो उसे  श्‍लेष अलंकार कहते हैं।]

-Kavita Malviya

ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से दौड़ती रही और स्त्री-पुरूष व्याकरण भी बनता-बिगड़ता रहा कुछ ऐसे -

और जब हम
हमके श्‍लेष  हो गए
तो रूपक हुए उपमा
हम चाँद थे
अब चाँद-से हो गए
बदले उपमान
हम
चंद्रमुखी से
सूरजमुखी हो गए
और अब हुए
अतिश्योक्‍ति
क्योंकि मित्र
हम ज्वालामुखी हो गए !.....:)

-
सुशीला शिवराण (श्योराण)

17 comments:

  1. वाह ………बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. आभार रचना की सराहना के लिए वंदना जी !

    ReplyDelete
  3. हम ज्वालामुखी हो गए !.....:)
    होना तो पहले ही चाहिये था .... :P
    खैर !जब जागो तभी सवेरा .... :D

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार विभा जी।

      Delete
  4. :):) हर साल उपमाएँ बदल जाती हैं ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा संगीता जी । भावनाओं के समरूप ही उपमाएँ बदल जाती हैं। रचना का संज्ञान लेने के लिए हार्दिक आभार।

      Delete
  5. वाह ....बहुत बढ़िया ...!!:))
    हर घड़ी आपके इकरार बदल जाते हैं ...!!

    ReplyDelete
  6. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद संगीता जी।

      Delete
  7. समय अनुसार बदलती हैं उपमाएं और अलंकार संबोधन के ...
    पर प्रेम एक सा ही रहता है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्यार वही रहता है....कभी खट्‍टा तो कभी मीठा !
      सही कह रहे हैं दिगंबर जी।

      Delete
  8. …बहुत खूब..सुन्दर उपमाए..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी टिप्पणी से बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है। आभार महेश्‍वरी जी।

      Delete
  9. हाय हम क्या से क्या हो गये !
    अलंकारों के बिम्ब को खूबी से अभिव्यक्त करती रचना !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जो क्या से क्या ना बना दे वो कैसा रिश्‍ता और कैसा प्यार वाणी जी ! आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार।

      Delete
  10. धन्यवाद यशवंत जी।

    ReplyDelete
  11. नये प्रतीकों से रचित भावपूर्ण रचना आभार

    ReplyDelete