वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Monday, 22 October 2012

प्राप्‍य




प्राप्‍य

तपते मरू-सा मेरा जीवन
धूप-घाम सहता
जूझता आँधियों से
उस जूझने के बीच
कुछ रेत के कण
धँस जाते आँखों में
दे जाते घनेरी पीर !

पारिजात की चाह में
कई बार उलझा कैक्टस में
खुशबू तो ना मिली
फटा आँचल
लहूलुहान गात
रिसता लहू
ज़ख्म सौगात !

किंतु मन !
मन पा ही लेता है अपना प्राप्य
कुछ शीतल स्नेहिल छींटे
हँस उठती हैं आँखें
हरिया उठता है मन !


-शील

10 comments:

  1. मरु में भी शीतलता मिल ही जाती है , बस अन्तस् में मरुता हावी न हो !
    भाव पूर्ण रचना !

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र अस्थाना जी

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  2. पारिजात की चाह में
    कई बार उलझा कैक्टस में
    खुशबू तो ना मिली
    फटा आँचल
    लहूलुहान गात
    रिसता लहू
    ज़ख्म सौगात !...बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ .... जीवन कि सच्चाई से परिचित कराया है आपने सुशीला जी .

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  3. किंतु मन !
    मन पा ही लेता है अपना प्राप्य
    कुछ शीतल स्नेहिल छींटे
    हँस उठती हैं आँखें
    हरिया उठता है मन !
    ...बस जीवन में इससे ज्यादा की चाह भी नहीं होती .....बहुत सुन्दर शीलजी

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  4. किंतु मन !
    मन पा ही लेता है अपना प्राप्य
    कुछ शीतल स्नेहिल छींटे
    हँस उठती हैं आँखें
    हरिया उठता है मन !.... मन की यही विधा तो जिजीविषा का वरदान है

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  5. यही भाव जीवन की सरसता को बचाये रखता है !

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  6. जीवन में सरसता बनाए रखने के लिए बस इन्हीं भाविं की आवश्यकता होती है...बहुत सुन्दर..

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  7. तपती दुपहर में भी मन स्वयं को किसी शीतल भाव में भिगो लेता है. बहुत ही सुंदर कविता.

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  8. किंतु मन !
    मन पा ही लेता है अपना प्राप्य
    कुछ शीतल स्नेहिल छींटे
    हँस उठती हैं आँखें
    हरिया उठता है मन !
    bilkul sahi bat man jaldi haar nahi maanta ...bahut acchi abhiwyakti ...

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  9. बेहद सुन्दर व भावपूर्ण रचना, आपको यहाँ http://mostfamous-bloggers.blogspot.in/ शामिल किया गया है पधारें

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