रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।
ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ़
मन पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी
अंधेरों-से डसने लगे हैं !
बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !
कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।
- शील
चित्र - साभार गूगल
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।
ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ़
मन पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी
अंधेरों-से डसने लगे हैं !
बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !
कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।
- शील
चित्र - साभार गूगल
:(
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ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
शुक्रिया अरूण जी
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन १०१ नॉट आउट - जोहरा सहगल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteधन्यवाद तुषार जी । अवश्य आएँगे आपकी पोस्ट पर ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति .....
ReplyDeleteआज के परिवेश का कच्चा-चिटठा खोल रही है ये रचना।
ReplyDeleteआभार !
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"-आज हर बिटिया यही सोच रही होगी.हालात दिन पर दिन बदतर होते जा रहें है.
ReplyDeleteसच में बहुत तकलीफ देह है यह कहना की अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजो ......
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ReplyDeleteदुखद स्थिति की बयां करती रचना !!!
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
latest post परम्परा
आज के समय को देखते हुए डर जायज ही है ....
ReplyDeleteमाता-पिता के मन में चिंता पैदा होना लाजमी है। अगले जन्म में बेटी पैदान करना कहना दर्दभरा है। हम आशा कर सकते हैं हैवानियत से शहिद,पीडित बच्चियों का दर्द हम सब महसूस कर दुनिया सुंदर बनाने की कोशिश करें।
ReplyDeleteये डर आज हर मन मे काबिज है
ReplyDeleteयही डर आज सभी माँ बाप के म्न क्प डरा रहा है..इसी संदर्भ में देखिए मेरी भी रचना..: माँ का आंचल"
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