माँ की याद में जो २ मई २०१३ को हम सब को स्नेहिल यादें दे
कर सदा-सदा के लिए विदा कह गईं ...... मगर माँ क्या कभी अपने बच्चों से दूर जा
सकती है? हर पल महसूस करती हूँ उन्हें......
स्मृति शेष
स्मृति शेष
तेरे अवशेष
खूँटी पर टँगा
नीली छींट का कुर्ता
जैसे अभी बढ़ेंगे तेरे हाथ
और पहन लेंगे
पीहर का प्यार
बंधेज का पीला
बंधा है जिसमें अभिमान
तीन बेटों की माँ का
पोते-पड़पोते
करते रहे समृद्ध
तेरे भाग्य को !
करती गई निहाल
बेटियों
बहुओं की ममता ।
शांत, सलिल जल में
मंथर तिरती तेरी जीवन-नैया
घिरी झंझावात में
दौड़े आए तेरे आत्मज
बढ़ाए हाथ
कि खींच लें सुरक्षित जलराशि में ।
कैंसर का भँवर
खींचता रहा तुझे पल-पल
अतल गहराई की ओर
असहाय, व्यथित
तेरे अंशी
देखते रहे विवश
काल के गह्वर में जाती
छीजती जननी
क्षीण से क्षीणतर होती
तेरी काया
तेरी हर कराह में
बन तेरा साया
ताकते रहे बेबस
कि बाँट लें तेरा दर्द
चुकाएँ दूध का क़र्ज़
निभा दें अपना फ़र्ज़
पर ये भयावह मर्ज़ !
आया जो बन काल
बेकार हुईं सब ढाल
तीन माह का संघर्ष
हारी ज़ि्न्दगी
जीती बीमारी ।
न होने पर भी
हर खूँटी, हर आले में
मौजूद है माँ
बिलगनी पर
परिंडे में
चूल्हे की आँच में
रोटी की खुशबू में
मक्खन के स्वाद में
दूध के पळिये में
दही की हांडी में
मिर्च और टींट में
हर स्वाद में
बसी है तू !
क्या है कोई अंतर
तेरे होने न होने में ?
बस इतना ही तो
कि तेरा स्पर्श
अहसास बनकर
अब भी लिपटा है
तन-मन से
और तू न हो कर भी
हर जगह है
घर की हर ईंट में
तुलसी, झड़बेर में
खेजड़ी, खेत में
आँगन की रेत में
घड़े के सीळे पानी में
चूल्हे की राख में
बड़ की छाँव में
हाँ तू है
हर जगह
और मुझमें ।
- शील
स्मृति शेष
स्मृति शेष
तेरे अवशेष
खूँटी पर टँगा
नीली छींट का कुर्ता
जैसे अभी बढ़ेंगे तेरे हाथ
और पहन लेंगे
पीहर का प्यार
बंधेज का पीला
बंधा है जिसमें अभिमान
तीन बेटों की माँ का
पोते-पड़पोते
करते रहे समृद्ध
तेरे भाग्य को !
करती गई निहाल
बेटियों
बहुओं की ममता ।
शांत, सलिल जल में
मंथर तिरती तेरी जीवन-नैया
घिरी झंझावात में
दौड़े आए तेरे आत्मज
बढ़ाए हाथ
कि खींच लें सुरक्षित जलराशि में ।
कैंसर का भँवर
खींचता रहा तुझे पल-पल
अतल गहराई की ओर
असहाय, व्यथित
तेरे अंशी
देखते रहे विवश
काल के गह्वर में जाती
छीजती जननी
क्षीण से क्षीणतर होती
तेरी काया
तेरी हर कराह में
बन तेरा साया
ताकते रहे बेबस
कि बाँट लें तेरा दर्द
चुकाएँ दूध का क़र्ज़
निभा दें अपना फ़र्ज़
पर ये भयावह मर्ज़ !
आया जो बन काल
बेकार हुईं सब ढाल
तीन माह का संघर्ष
हारी ज़ि्न्दगी
जीती बीमारी ।
न होने पर भी
हर खूँटी, हर आले में
मौजूद है माँ
बिलगनी पर
परिंडे में
चूल्हे की आँच में
रोटी की खुशबू में
मक्खन के स्वाद में
दूध के पळिये में
दही की हांडी में
मिर्च और टींट में
हर स्वाद में
बसी है तू !
क्या है कोई अंतर
तेरे होने न होने में ?
बस इतना ही तो
कि तेरा स्पर्श
अहसास बनकर
अब भी लिपटा है
तन-मन से
और तू न हो कर भी
हर जगह है
घर की हर ईंट में
तुलसी, झड़बेर में
खेजड़ी, खेत में
आँगन की रेत में
घड़े के सीळे पानी में
चूल्हे की राख में
बड़ की छाँव में
हाँ तू है
हर जगह
और मुझमें ।
- शील
माता जी को श्रधान्जली,बहुत ही भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी।
Deleteअम्मा को शत शत नमन और विनम्र हार्दिक श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम जी
Deleteभावनात्मक प्रस्तुति। माँ को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteआभार हर्षवर्धन जी
Deleteमाँ का स्पर्श बिना उनके भी राहत देता है .... बहुत भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार संगीता जी।
Deleteआभार ब्लॉग बुलेटिन......माँ की स्मृतियों को साझा करने के लिए.....पुन: आभार
ReplyDeleteमाँ को विनम्र श्रद्धांजलि .......
ReplyDeleteमाँ को नमन , माँ हर जगह है ..........
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... विनम्र श्रद्धांजलि ..
ReplyDeleteधन्यवाद अरूणा जी
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