वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday 5 June 2011

कुचला स्वाभिमान




                                                      कुचला स्वाभिमान 

कुचला हुआ स्वाभिमान सँभालता
नैतिक-अनैतिक बीच त्रिशंकु-सा
झल्लाता, झेंपता, खींसे निपोरता
यह भारत का आम आदमी है!

कहीं किसी बड़े दफ्तर का प्रभारी       
पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी
न्यायाधीश;अन्याय की लाचारी !
राजनीति सत्ता;सब पे भारी !         

नेताओं के जूतों की धूल झाड़ता
पतन के किस गह्वर में गिरता !

झल्लाता, झेंपता, खींसे निपोरता
यह भारत का आम आदमी है !


घोटालों की है एक लंबी श्रंखला
बोफोर्स, कॉमनवेल्थ, 2G,चारा
कहीं दो जून रोटी को तरसता
भूखा,अनपढ़ बचपन बिलखता
काला धन स्विस लोक्कर में अटता
पोसे परदेस, चरमरा अर्थ-व्यवस्था !

झल्लाता, झेंपता, खींसे निपोरता
यह भारत का आम आदमी है !


किंचित हमारी सहिष्णुता
बन गई हमारी अकर्मण्यता
बाँध तोड़ दिए हैं सब

भ्रष्टाचार के सैलाब ने
इससे पहले की लील जाए
चेतन बनो, खोजो उपाय!

झल्लाता, झेंपता, खींसे निपोरता
यह भारत का आम आदमी है !


जे.पी., अन्ना, किरण, केजरीवाल
किस-किस का सहारा लोगे तुम ?
अपने अधिकार की लड़ाई में कहो
किस-किस को मसीहा बनाओगे तुम?
बहुत हुआ कसम उठा लो, सब साहस जोड़ के
अपने मसीहा आप बनोगे,अब कायरता छोड़ के !

कुचला हुआ स्वाभिमान सँभालतानैतिक-अनैतिक बीच त्रिशंकु-सा
झल्लाता, झेंपता, खींसे निपोरता
यह भारत का आम आदमी है !






                                              

3 comments:

  1. सत्य है बड़ी ही दर्दनाक है , आमजन की दशा | सुन्दर भावाभिव्यक्ति |

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  2. धन्यवाद अंजू मैडम !! :)

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  3. आज की राजनैतिक कुव्यवस्था के के प्रति जनाक्रोश की सशक्त अभिव्यक्ति

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