वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Tuesday 27 December 2011

कैसी प्रतिस्पर्धा !

युवा मन 

होता आहत

भरता आक्रोश

जब सुनता

'Weaker sex'

कमज़ोर बालिका 

कमज़ोर स्त्री !



बाल्यावस्था पिता अधीन

युवावस्था पति स्वामी
  
वृद्धावस्था पुत्र सुरक्षा !

मन में आक्रोश पलता 

क्यों सबला को अबला ? 

सुरक्षा - भ्रम देकर 

बाँधी बेड़ियाँ बेकल ! 



साहस, हिम्मत लड़कों की तरह 

दबंगई,खेलकूद लड़कों की तरह

लड़की लड़कों से कम नहीं

है गुरूर माँ-बाप का 

हरगिज़ बोझ नहीं !




अब करती चिंतन

बैठ आत्म-मंथन

जी चुकी हूँ चार दशक

बेटी,बहन,भार्या,माँ के रूप

पाया है जीवन का सार 

नारी नैसर्गिक निर्भरा !



बचपन में डरी जब 

जा छुपी बाबूजी की गोद

यौवन-काल

भाईयों का साथ

किले के परकोटे-सा

"श्रीमती" संग सम्मान मिला

एक गरिमामयी मान मिला 

हर समस्या का हल 

हर विपदा में संबल !



बेटों का प्यार,सानिध्य  

देता गर्व,सुरक्षा सामीप्य 

घर-बाहर, यात्रा पर 

सब काम, दायित्व 

सहर्ष लेते कन्धों पर

प्रत्येक रूप में पुरुष 

सुख,सुकूं, सुरक्षा 

फिर कैसी प्रतिस्पर्धा !

अपनी हस्ती कर विलीन  

रिश्तों में जीवन तल्लीन 

भरपूर दे-सब पा जाना

जीवन-अमृत पा लेना|

6 comments:

  1. नारी पर गहन मंथन ... अच्छी प्रस्तुति

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  2. निर्भरता में सार्थकता ढूँढती और निर्भरता पर ही प्रश्नचिह्न लगाती सुंदर कविता. परंपरागत विचारों पर प्रश्नों की निरंतरता ही समाधान देती है.

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  3. yahi hamare samaj ki vidambna hain bat to barabri ki karte par barabar samajhte nhin achhi post

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  4. बहुत सुन्दर रचना , सादर .
    .
    नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.

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  5. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  6. badiya chnitan manan karati rachna prastuti hetu abhar!

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