वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Thursday 21 June 2012

कविताएं - कोई रूठे ना किसी से



बाबा की लाड़ली
बात-बात पर रूठती
खेल-खिलौने
मिठाई, गोल-गप्पे
कभी नई ड्रेस
बनते रूठने के बहाने
जिनकी आड़ में
पा ही लेती वह
ढेर-सा प्यार
और खूब मनुहार!

आज वह सुघड़ तरूणी
मनाती है सबको
कभी रूठे दिनों
रूठी रातों को
रूठे मीत
रूठे नातों को
कभी रूठ जाता नसीब
तो नयन छलछला उठते
भूले मंज़र तैर उठते
रूठने के ज़िक्र से
मन खोया-खोया हो जाता है
उसके बचपन का अस्त्र
उसकी गर्दन पर तन जाता है
घुटती हैं साँसें
कहती हैं आहें
कोई रूठे ना किसी से !

-सुशीला शिवराण
चित्र : साभार गूगल

3 comments:

  1. घुटती हैं साँसें
    कहती हैं आहें
    कोई रूठे ना किसी से !

    -बहुत गहन!!

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  2. घुटती हैं साँसें
    कहती हैं आहें
    कोई रूठे ना किसी से !....सही कहा..गहन अभिव्यक्ति

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  3. उसके बचपन का अस्त्र
    उसकी गर्दन पर तन जाता है
    घुटती हैं साँसें
    कहती हैं आहें
    कोई रूठे ना किसी से !
    बहुत मार्मिक प्रस्तुति . .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शनिवार, 30 जून 2012
    दीर्घायु के लिए खाद्य :
    http://veerubhai1947.blogspot.de/

    ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट

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