वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Monday 11 June 2012

उमड़-घुमड़ कर बरसो घन



जलती धरती
आग उगलती
व्याकुल प्राणी
बूँद मिलती
उमड़-घुमड़ के बरसो घन !

कुम्हलाए बिरवे
झर गए फूल
सूखी नदिया
उड़ रही धूल
तुम आओ तो हरखे वन !

फटी धरती
कलपे किसान
सूखी बावड़ी
पंछी हलकान
प्यासे ढोर, प्यासे जन !

गाओ मल्हार
बदरा बरसें
झूमे सृष्‍टि
प्रकृति हरषे
पुरवाई छू जाए तन !





-सुशीला शिवराण

चित्र - साभार गूगल

18 comments:

  1. बरसात का बहुत सुन्दर भावपूर्ण आह्वान...

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  2. वाह हृदय से अब वर्षा को पुकार रहा मन ....!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें...

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  3. भावपूर्ण रचना क्या कहने...
    बहुत ही सुन्दर..
    भावविभोर करती रचना...

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  4. सच में अत्यंत सामयिक....अब तो ईश्वर तक ये रचना पहुंचे और तप्त धरती की अकुलाहट दूर हो.....

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  5. कुम्हलाए बिरवे
    झर गए फूल
    सूखी नदिया
    उड़ रही धूल
    उमड़-घुमड़ कर बरसो घन !

    yehi saheeh vaqta hai baadalon k barsne kaa...

    Khoob tapen tab pyas bhujhan..
    sathie mere bhool na jana..

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  6. If u can, visit my blog and leave your e-mail adress, so that every post may b sent 2 u regularly.

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  7. वाह ... बहुत बढि़या।

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  8. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  9. बरसो घन, जल्दी बरसो...
    आभार सुशीला जी!!

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  10. वाह...बहुत खूबसूरत कविता है...लगता है आपको बारिशों से बहुत प्यार है...बारिश में खोपोली जहाँ मैं रहता हूँ से बेहतर जगह क्या होगी...अभी झमाझम बारिश हो रही है सामने के पहाड़ों पर हरियाली छ गयी है और झरने चल रहे हैं...अद्भुत दृश्य है...कभी मुंबई आना हो तो बताएं.

    नीरज

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  11. अब तो बरस भी जाओ घन...सुन्दर भापूर्ण पुकार..

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  12. सुन्दर चित्रण वर्षा के आवाहन का ,प्यासी धरती ,जन मन का .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शनिवार, 30 जून 2012
    दीर्घायु के लिए खाद्य :
    http://veerubhai1947.blogspot.de/

    ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  13. क्या सुन्दर गीत.... वाह!

    आ भी जाओ
    लिए बिजुरिया,
    सुमिर पिया को
    बही कजरिया,
    झरती अँखियाँ भीगा मन।
    उमड़-घुमड़ के बरसो घन।


    सादर।

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  14. लगता है इतने आर्द्र आवाहन का भी उनपर कोई नहीं है ...अब तो बस डांटना फटकारना ही शेष रह गया है

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  15. waah sushila ji bahut sundar aavhaan , shabdo ki sundar ladi badhai aapko .....:))

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