वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Wednesday, 12 June 2013

मेरे पावस


तुम्हारे प्रेम ने
पुरवा बन
जब-जब छुआ मुझे
झंकृत हुए मन के तार
झूम उठा अंग-प्रत्यंग
गा उठा मन 

गीत प्रीत के ।

तुम्हारे प्रेम ने
पावस बन
जब-जब भिगोया मुझे
जी उठी मैं
ज्यों तपती रेत
हो जाती है तृप्त
झमाझम बारिश में
आनंद से विभोर
हुलस उठा मन
नाचा बन मोर।

तुम्हारा प्रेम
मानता है सब नियम
नहीं रहता स्थायी
बदलता है प्रकृति-सा
हो जाता है पतझर
झर जाते हैं अहसास
जड़ हो जाते
मन-आत्मा
नहीं पोसता
तुम्हारा प्रेम

हो जाती हूँ ठूँठ
सहती मौसम की मार
निर्विकार

दग्ध करते अंतस 
आँधियाँ, लू के थपेड़े
खड़ी हूँ उन्मन
चिर-प्रतीक्षा में
कब आओगे
मेरे पावस?

- शील

चित्र - साभार गूगल

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर सुशिलाजी

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    1. शुक्रिया सरस जी।

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  2. nice image has enhance your post's beauty .nice post with nice feelings .
    हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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    1. धन्यवाद शिखा जी।

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  3. बहुत सुन्दर कविता मर्म छू लेने वाली .Manjul Bhatnagar

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    1. कविता पसंद करने के लिए आभार मंजुल जी।

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  4. सुंदर कविता, बहुत बढिया।
    मन को छू गई ...


    मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
    हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद महेन्द्र श्रीवास्तव जी।

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  5. प्रेम से ओत प्रोत लाजवाब पंक्तियाँ, प्रेम रस में डूबी हुई प्रत्येक पंक्ति अत्यंत सुन्दर एवं मनोहारी हैं सुशीला जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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    1. आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार अरून जी।

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  6. aapki yeh rachnaen man ko chhu gaeen,badhai.

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  7. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है अशोक जी। आभार

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  8. बिरह के बाद प्रेम की ज्वाला और तेज हो जाती है. सुंदर भावपूर्ण कविता. बधाई सुशीला जी.

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  9. अलग मौसमों के परिधानों मे सजा ये अलौकिक एह्सास इससे अलग और कुछ हो ही नहीं सकता ... एहसासों को शब्दों मे य्यक्त करने की अनोखी प्रतिभा ईध्व्र ने आपको दी है ... अच्छा और सुखद था इसे पढ़ना ...

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