वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday 29 January 2012

चर्चे...........


थोड़ा कम है !

नेकनामी के बहुत हैं हमारे चर्चे
उघड़ें परतें, सरे आम हो जाएँ चर्चे

सनद और काबिलियत की कमी कहाँ
इम्तिहां में हमने खूब चलाए पर्चे

न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
न पूछो कितने छपवाए पर्चे

नाते-रिश्ते,ब्याह,भात,उठावणी
कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे

यूँ तो हममें है ईमानदारी बहुत
दुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे

-सुशीला श्योराण

चित्र : आभार गूगल


गज़ल के रूप में ये कुछ यूँ ढल गई -



शहर में नेकी के बड़े हमारे चर्चे
सरका नकाब, हुए आम हमारे चर्चे

सनद और होशियारी की मिसाल हम
ये हैं फ़र्ज़ी, ऎसे हुए हमारे चर्चे 

खुदाया ना मिली हमें शोहरत ज़रा 
हरसू इश्तिहार ना हुए हमारे चर्चे

तीज़-त्योहार,ब्याह-सगाई,उठावना
खोला किए खज़ाने ,  हुए हमारे चर्चे

यूँ तो है ज़ज़्बा--ईमानदारी बहुत
रिश्वतखोरी के आम हुए हमारे चर्चे

-सुशीला श्योराण 

25 comments:

  1. Replies
    1. आभार संगीता जी ।

      Delete
  2. गजब की गजल रची है मैम!
    बेहतरीन

    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद यशवंत जी।

      Delete
  3. न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
    न पूछो कितने छपवाए पर्चे
    :-)
    बहुत खूब.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको हमारे चर्चे अच्छे लगे, शुक्रिया :)

      Delete
  4. न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
    न पूछो कितने छपवाए पर्चे ... maza aa gaya

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि जी खुदा से यही दुआ है कि आप को हमारी रचनाएँ यूँ ही खुशी देती रहें!वो क्या है कि आप लोगों को खुश देखकर हमें बहुत खुशी होती है :)

      Delete
  5. न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
    न पूछो कितने छपवाए पर्चे


    नाते-रिश्ते,ब्याह,भात,उठावणी
    कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे

    ये पर्चे - खर्चे के बाद चर्चे हो जाएँ तो समझो गनीमत है ...:):) अच्छी रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाक़ई बजा फ़रमाया आपने संगीता स्वरुप ( गीत )जी !
      पर्चे - खर्चे के बाद चर्चे हो जाएँ तो बहुत बड़ी गनीमत है !
      फ़िलहाल तहे दिल से शुक्रिया।

      Delete
  6. बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,...बहुत खूब सुशीला जी....
    welcome to new post ...काव्यान्जलि....

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया @dheerendra जी ।

      Delete
  7. यूँ तो हममें है ईमानदारी बहुत
    दुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे

    काबिलेतारीफ, वाह !!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया @अरूण कुमार जी।

      Delete
  8. बढ़िया पैरोडी बन पड़ी है. पैरोडी का अपना संसार और मज़ा होता है. बहुत खूब.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार भूषण जी

      Delete
  9. बहुत ही उत्कृष्ट रचना । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार ! अवश्य पधारेंगे प्रेम सरोवर जी।

      Delete
  10. Replies
    1. स्वागत आपका हरकीरत जी। आपकी रचनाएँ भी पढी हैं J.s. Parmar भाई सा कॊ facebook wall पर। बहुत सुंदर लिखती हैं आप ! बधाई और शुक्रिया

      Delete
  11. तीज़-त्योहार,ब्याह-सगाई,उठावना

    खोला किए खज़ाने , न हुए हमारे चर्चे


    यूँ तो है ज़ज़्बा-ए-ईमानदारी बहुत

    रिश्वतखोरी के आम हुए हमारे चर्चे


    suhila ji ab apki rachana ke to charche hi charche hain...khoobsoorat rachana ke liye sadar abhar ke sath badhai.

    ReplyDelete
    Replies
    1. नवीन जी आपकी तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया।

      Delete
  12. अनेक धन्यवाद।

    ReplyDelete
  13. न मिली हमें शोहरत ज़रा भी

    न पूछो कितने छपवाए पर्चे
    .बहुत बढ़िया ग़ज़ल है .

    ReplyDelete