वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 31 March 2012

कस्तूरी प्रीत !




कस्तूरी प्रीत !


प्रीत के बिरवे

अंकुरित, पल्लवित

पुष्पित, सुरभित

गमके, महके

दूर से लहके

जिसके लिए खिले

रस, गंध को 

नित वह तरसे

कस्तूरी प्रीत !



मन एकाकी

दूर साथी

रहे जहाँ

मन वहाँ

न कोई चिठिया

न कोई तार

कैसे गलबहियाँ हार

मैं तो गई हार

अनूठी ये रीत

कस्तूरी प्रीत !


-सुशीला शिवराण



चित्र : आभार गूगल

17 comments:

  1. बहुत सुंदररचना ... ...!!
    बधाई एवं शुभकामनायें ...!

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  2. बहुत अच्छा लिखा है,आपने

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  4. ......प्रशंसनीय प्रस्तुति
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ
    मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ कृपया मेरा मार्ग दर्शन करे
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  5. बढ़िया प्रस्तुति ।।

    बधाई ।।

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  6. bahut sundar ...virah bhi baawri hai

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  7. अनूठी ये रीत

    कस्तूरी प्रीत !... संग संग रहे मेरे , फिर भी विकल रहे मन हर पल

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  8. बहुत सुन्दर....
    कस्तूरी प्रीत....
    खोजूं यहाँ वहाँ....बेवजह!!!!!

    अनु

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  9. बहुत ही बढ़िया मैम


    सादर

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  10. जिसके लिए खिले
    रस, गंध को
    नित वह तरसे....सच कहा सुशिलाजी ...यह जन्मों का सच बहुत ही सुन्दर उकेरा है आपने

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  11. अनोखी रीत कस्तूरी प्रीत,...
    बहुत खूब सुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  12. कस्तूरी प्रीत टाइटल ही बहुत कुछ कह गया।
    प्रीत जब कस्तूरी हुई मेरी दीवानगी की ना कोई हद रही

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  13. प्रेम कस्तूरी की प्रीत अनूठी ही होती है ... होई हद नहीं होती ...
    रामनवमी की बधाई ...

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  14. बहुत खूबसूरत शब्द विन्यास ....

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  15. वियोग जीवन का एक अटूट हिस्सा है ...कभी संतान से ...कभी साथी से ...कभी प्रियजनों से ....और उसकी टीस साफ़ उभरी है आपकी कविता में

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  16. umda rachna,bdhai aap ko

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  17. भवनाओं के सुंदर प्रवाह की कविता है.

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