वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Friday, 27 May 2011

माँ





कोख में सहेज
रक्त से सींचा
स्वपनिल आँखों ने
मधुर स्वपन रचा
जन्म दिया सह दुस्तर पीड़ा
बलिहारी माँ देख मेरी बाल-क्रीड़ा !

गूँज उठा था घर आँगन
सुन मेरी किलकारी
मेरी तुतलाहट पर
माँ जाती थी वारी-वारी !

उसकी उँगली थाम
मैंने कदम बढ़ाना सीखा
हर बाधा, विपदा से
जीत जाना सीखा !

चोट लगती है मुझे
सिसकती है माँ
दूर जाने पर मेरे
खूब बिलखती है माँ !

ममता है, समर्पण है
दुर्गा-सी शक्‍ति है माँ
मेरी हर ख़ुशी के लिए
ईश की भक्ति है माँ !

माँ संजीवनी है
विधाता का वरदान है
जिंदगी के हर दुःख का
वह अवसान है
प्रभु का रूप
उस का नूर है माँ
एक अनमोल तोहफा
सारी कायनात है माँ !

-सुशीला शिवराण


7 comments:

  1. wow...lovely...beautiful poem...there's no love greater than mother's love :)

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  2. Very true Laxmi. God could not be everywhere so he created mothers!

    Thanks for nice words.

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  3. jivan ka anmol ratan hai maa......:)
    lovely poem ma'am...

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  4. कल 07/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. माँ होती ही है ऐसी ! बहुत प्यारी रचना ! ऐसी 'माँ' को मेरा भी नमन !

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  6. मां के लिये जब भी कुछ पढ़ा ...मन भावुक हो जाता है ...बहुत ही अच्‍छी रचना ।

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  7. यशवंतजी आपका बहुत-बहुत आभार !
    आपको असीम सुख और सफलता मिले ये दुआ है !

    साधनाजी और सदाजी ! मेरी कृति पढ़ने और पसंद करने के लिए आपको धन्यवाद |

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