कोख में सहेज
रक्त से सींचा
स्वपनिल आँखों ने
मधुर स्वपन रचा
जन्म दिया सह दुस्तर पीड़ा
बलिहारी माँ देख मेरी बाल-क्रीड़ा !
गूँज उठा था घर आँगन
सुन मेरी किलकारी
मेरी तुतलाहट पर
माँ जाती थी वारी-वारी !
उसकी उँगली थाम
मैंने कदम बढ़ाना सीखा
हर बाधा, विपदा से
जीत जाना सीखा !
चोट लगती है मुझे
सिसकती है माँ
दूर जाने पर मेरे
खूब बिलखती है माँ !
ममता है, समर्पण है
दुर्गा-सी शक्ति है माँ
मेरी हर ख़ुशी के लिए
ईश की भक्ति है माँ !
माँ संजीवनी है
विधाता का वरदान है
जिंदगी के हर दुःख का
वह अवसान है
प्रभु का रूप
उस का नूर है माँ
एक अनमोल तोहफा
सारी कायनात है माँ !
-सुशीला शिवराण
wow...lovely...beautiful poem...there's no love greater than mother's love :)
ReplyDeleteVery true Laxmi. God could not be everywhere so he created mothers!
ReplyDeleteThanks for nice words.
jivan ka anmol ratan hai maa......:)
ReplyDeletelovely poem ma'am...
कल 07/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
माँ होती ही है ऐसी ! बहुत प्यारी रचना ! ऐसी 'माँ' को मेरा भी नमन !
ReplyDeleteमां के लिये जब भी कुछ पढ़ा ...मन भावुक हो जाता है ...बहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeleteयशवंतजी आपका बहुत-बहुत आभार !
ReplyDeleteआपको असीम सुख और सफलता मिले ये दुआ है !
साधनाजी और सदाजी ! मेरी कृति पढ़ने और पसंद करने के लिए आपको धन्यवाद |