वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 28 May 2011

आकुल अंतर



आकुल अंतर

छेड़ गई दिल को मेरे
बचपन की यादों की लहर
जब था हँसना-खेलना,गाना
ना थी कभी कोई फ़िकर |



माँ की गोद में था समाया 
बाल-सुलभ सुख सारा 
हर कठिन घड़ी में 
उसकी ममता का था सहारा |


बचपन बीता यौवन आया
जीवन में उच्छ्वास लाया
नए थे लक्ष्य, नई चुनौतियाँ
बनी सहज पा माँ का सरमाया |


हुआ विवाह तो 
बेटी हुई पराई !
दिल में उठी टीस
जग ने कैसी ये रीत बनाई !


मिला ससुराल का आँगन तो
छूटा माँ का स्नेही आँचल
सब सुख हैं जीवन में लेकिन 
माँ की ममता को मन आकुल !











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