वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 1 June 2013

माँ की स्मृति में.....


साँसों की डोर उखड़ रही थी.......उसने चूल्हे की ओर देखा........जिसकी आँच में उंगलियाँ जला कितनी तृप्त होती रही वो......परिंडा, घड़े ....सींचती रही जिस अमृत से.... अपनों को, खुद को उस तपते रेगिस्तान में......नज़रें घूमती रहीं.......हर उस चीज़ पर जो उसकी ज़िन्दगी का बरसों से हिस्सा बनी रही......मानो मुंदने से पहले इन्हें आँखों में कैद कर अपने साथ ले जाना चाहती हो......घूमती हुई नज़र उन चेहरों पर टिक गई...... जिनमें वो खुद को देखती आई थी.....एक संतोष का भाव उसके चेहरे पर तैर गया.....अब पास ही खड़े अपने जीवन साथी का हाथ पकड़ा........अजीब सी वेदना तैर गई आँखों में......मझोले बेटे ने संबल देने के लिए उसका हाथ थामा......उसने बेटे-बेटी को देखा और उनके चेहरे आँखों में लिए सदा के लिए विदा कह गई.......

तू विदा लेकर भी कहाँ जुदा हो पाई माँ !


- शील


15 comments:

  1. सुशीला जी बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ..... माँ जाने के बाद भी आसपास ही महसूस होती है शायद ये उसका प्यार ही है

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    1. आज एक महीना हो गया माँ को गए लेकिन वो आज भी कहीं आस-पास ही है।

      शुक्रिया दोस्त

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-06-2013) के चर्चा मंच 1263 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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    1. धन्यवाद अरूण जी माँ की स्मृति को साझा करने के लिए।

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    1. शुक्रिया संगीता जी । यूँ ही स्नेह बनाए रखें।

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  4. मां की बात होती है तो मैं भावुक हो जाता हूं। मेरा मानना है कि आज दुनिया में वही आदमी सबसे ज्यादा धनवान है, जिसकी मां का साया उसके साथ है। आज जिसकी मां का साया आदमी के साथ नहीं है, वो दुनिया का सबसे गरीब इंसान हैं।

    ए अंधेरे देख ले, मुंह तेरा काला हो गया
    मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।


    नोट : आमतौर पर मैं अपने लेख पढ़ने के लिए आग्रह नहीं करता हूं, लेकिन आज इसलिए कर रहा हूं, ये बात आपको जाननी चाहिए। मेरे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए । धोनी पर क्यों खामोश है मीडिया !
    लिंक: http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/blog-post.html?showComment=1370150129478#c4868065043474768765

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    1. विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार महेन्द्र जी। आपके ब्लॉग को अवश्य पढ़ूँगी।

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  5. माँ की याद जहाँ से ऐसे ही भुलाई जा सकती है क्या?

    भावुक करती प्रस्तुति.

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    1. संवेदना साझा करने के लिए आभार रचना जी।

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  6. मां की जीवन-स्‍मृतियों और उस आत्‍मीय रिश्‍ते को बहुत संवेदनशीलता के साथ सहेजती है यह कविता। बधाई और शुभकामनाएं।

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  7. माँ की स्मृति को "चर्चा, मयंक का कोना" में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार डॉ रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी। सभी लिंक बहुत उपयोगी और सुरूचिपूर्ण लेखन का उदाहरण हैं।

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  8. माँ को भुला पाना सहज नहीं होता मन की, व्यथा कथा को मार्मिकता से उकेरा है
    वाह बहुत खूब
    सादर


    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  9. बहुत मार्मिक
    माँ कभी जुदा नहीं होती अपने बच्चों से
    सादर !

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  10. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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