वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 28 April 2012

आओ सारे बंधन तोड़ें



आओ सारे बंधन तोड़ें
बंधन पीर दे जाते हैं
आज बादलों संग उड़ें
देह वसन दे जाते हैं !

विचरेंगे जब अनंत गगन
मन में लिए तेरी लगन
खुदी में होंगे हम मगन
रूहों का संगम, नहीं बदन !

जन्म-मरण का न फेरा होगा
अपनी साँझ औ सवेरा होगा

वहाँ
 बंदिशों का न घेरा होगा
चँदा औ तारों में बसेरा होगा !

झिलमिल तारे अँगना होंगे
पिछवाड़े हरसिंगार झरेंगे

नित
खुशबुओं के डेरे होंगे
सीले झोंके पुरवाई होंगे !

अनंत व्योम विस्तार होगा
छूटा निर्मोही संसार होगा
हर दुख का निस्तार होगा
शाश्‍वत प्रेम अपार होगा !

रूह को रूह जब पाएगी
सारी सृष्‍टि खिल जाएगी

दिव्य गीत कोई गाएगी
पावन प्रीत मुस्काएगी !



-सुशीला शिवराण

चित्र - साभार गूगल

32 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत भावमयी रचना...

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  2. अनंत व्योम विस्तार होगा
    छूटा निर्मोही संसार होगा
    हर दुख का निस्तार होगा
    शाश्‍वत प्रेम अपार होगा !

    आओ सारे बंधन तोडें.........
    काश के इतना आसान होता बंधनों को तोड़ पाना.....

    बहुत सुंदर सुशीला जी....

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  3. khoobasurat bhvnapradhan post bdhai.meri nai post par aapka svagat hae.

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    1. स्वागत है आपका। कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद।

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  4. रूह को रूह जब पाएगी
    सारी सृष्‍टि खिल जाएगी
    आत्मा परमात्मा से मिल जाएगी
    परमानंद, परम् तृप्‍ति पा जाएगी !.... आध्यात्मिक अभिव्यक्ति

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    1. आपकी टिप्पणी नई ऊर्जा देत्ती है। आपको कविता पसंद आई, हार्दिक आभार।

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  5. आपका धन्यवाद यशवंत जी । आप ”नयी पुरानी हलचल” पर कविता पोस्ट कर रहे हैं तो आपको अवश्‍य ही पसंद आई होगी..:)

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  6. निराकार प्रणय की अप्रतिम प्रस्तुति सुशिलाजी ....!!!!

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    1. हार्दिक आभार सरस जी ...:))

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  7. सुन्दर प्रस्तुति ।

    बधाई स्वीकारें ।।

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    1. कविता को पसंद करने के लिए आभार

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  8. काश! की जीवन में बंधन नहीं होते ----------बहुत सुन्दर भाव |

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    1. सच ! कितना अच्छा होता हम भी पंछियों की तरह फ़ुर्र से उड़ जाते !
      बहरहाल ब्लॉग पर आपका स्वागत और कविता पसंद करने के लिए हार्दिक आभार।

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  9. Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है पंछी जी ! कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद

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  10. आओ सारे बंधन तोड़ें
    बंधन पीर दे जाते हैं
    सुन्दर प्रस्तुति ..बधाई

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    1. कविता पसंद करने के लिए शुक्रिया तुलिका जी !

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  11. बहुत सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक आभार उपासना जी

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  12. रूह को रूह जब पाएगी
    सारी सृष्‍टि खिल जाएगी
    दिव्य गीत कोई गाएगी
    पावन प्रीत मुस्काएगी !

    अच्छी कविता । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।

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    1. धन्यवाद प्रेम सरोवर जी।
      आपके पोस्ट पर जल्द ही आऊँगी।

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    1. शुक्रिया रेवा जी।

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  14. बेहतरीन रचना
    अरुन (arunsblog.in)

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  15. आओ सारे बंधन तोड़ेँ
    बंधन पीर दे जाते हैं
    आज बादलों संग उड़ें
    देह वसन दे जाते हैं !
    ...... बहुत सुन्दर कविता ।

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    1. हार्दिक आभार सुरेन्द्रपाल वैद्‍य जी।

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  16. सुशीला जी पूरी कविता बहुत भावप्रवण है । ये पंक्तियाँ गहन सौन्दर्य से सिंचित हैं-
    झिलमिल तारे अँगना होंगे
    पिछवाड़े हरसिंगार झरेंगे
    नित खुशबुओं के डेरे होंगे
    सीले झोंके पुरवाई होंगे !

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    1. आपकी प्रतिक्रिया से नई ऊर्जा मिलती है । प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!

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  17. सुन्दर प्रस्तुति!

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  18. सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  19. सार गर्भित ... भावपूर्ण गहरी रचना ... काव्यमय बहती हुयी ...

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