वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Wednesday 19 December 2012

हे सृजनहार




आज विधाता से एक सवाल पूछने का बड़ा मन कर रहा है -

हे सृजनहार
पूछती हूँ
आज एक सवाल
क्यों लिख दी तूने
जन्म के साथ
मेरी हार ?


सौंदर्य के नाम पर
अता की दुर्बलता
सौंदर्य का पुजारी
कैसी बर्बरता !
इंसां के नाम पर
बनाए दरिंदे
पुरूष बधिक
हम परिंदे
नोचे-खसोटें
तन, रूह भी लूटें
देख
कैसे, कितना हम टूटे !

(
लिखी जा रही कविता से...)
-शील

9 comments:

  1. स्त्रियो की दुर्दशा उसकी पीड़ा का सटीक चित्रण..

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  2. बस दर्द ही दर्द है ...आज मन में...

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  3. बेहतरीन,दर्द भरी सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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  4. टूट तो जाते ही हैं हम....धीरे धीरे बिखर न जाएँ...

    सादर
    अनु

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  5. बहुत मार्मिक...

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  6. बहुत दर्द संजोया है...मार्मिक..

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  7. संवेदनाओं को संजोये मार्मिक प्रस्तुति

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  8. बेहद मार्मिक व संवेदनशील प्रस्तुति

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  9. दर्द की चीख
    निकलती है जब
    घुटती साँसे
    ...

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